पर्यावरण दिवस
मत कर ए मानव यूँ मुझ पर तू प्रहार
बच्चे की भाँति कर रहा है वृक्ष पुकार
पेड़-पौधे तो होते हैं मासूम से बच्चों जैसे
बन जाओ इनके माता-पिता, न कटने दो ऐसे
बिन हरियाली के धरा का कहाँ भला श्रृंगार
प्रकृति ने दिया है ये अद्भुत-अमूल्य उपहार
फिर भी नहीं मानता ये निर्बुद्धि मानव
खुद के स्वार्थ में देखो बन बैठा है दानव
पछताएगा एक दिन जब हाथ न कुछ रहेगा
ऑक्सीजन की कमी हर पल जब सहेगा
मत भूल ये पेड़-पौधे करते तुझ पर उपकार
खुद ही खातिर ही बचा लो इन्हें कर लो स्वीकार
एक अगर कट भी जाए तो दस है हमें लगाने
एक-दूजे को समझाकर है वृक्ष हमें बचाने
मीठे फल के साथ-साथ देते ये हमको छाया
औषधियों की खान हैं ये, क्या कुछ न इनसे पाया
पेड़ ही तो है मानव-जीवन का आधार
बहुत हुआ अब रोक दो इनके कटने की रफ़्तार
हरे-भरे ये वृक्ष हमारे लगते कितने प्यारे हैं
जैसे माँ को अपने बच्चे ये भी पृथ्वी के दुलारे हैं
बच्चों संग माँ की भी पीड़ा पर नहीं दिखाई देती है
जबकि माँ की तरह ही प्रकृति हमसे कुछ न लेती है
आओ मिलकर त्याग दें सब ये अपना अहंकार
करें संकल्प आज के दिन एक पेड़ लगाएँ हर बार
रचयिता
पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।
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