हरी भरी धरा
इस माटी में जन्म लिया,
माटी का कर्ज चुकाना है।
एक पेड़ प्रति दिवस लगाकर,
धरा को स्वच्छ बनाना है।।
शुद्ध वायु दूषित हुई है,
नदियाँ हुईं मलिन हैं।
फिर भी न लज्जा आई अगर,
प्रकृति शून्य विलीन है।।
हरा-भरा हो जीवन अपना,
सुंदर, स्वच्छ सुहावन सपना।
सधे संतुलन हँसे प्रकृति भी,
यह संकल्प उठाना है,
धरा को अपनी आज हमें
प्रदूषण मुक्त बनाना है।।
रचयिता
डॉ0 शालिनी गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय मुर्धवा,
विकास खण्ड-म्योरपुर,
जनपद-सोनभद्र।
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