योग दिवस का सार
सभी दिवस से है बड़ा,
दिवस इक्कीस जून।
दक्षिणायन सूरज हुआ,
बन गया अफलातून।
पर्व ग्रीष्म संक्रान्ति का,
शक्ति अलौकिक दिव्य।
तेजमयी हर किरण का,
करलो स्वागत भव्य।
अपनाकर तुम योग को,
सेहत करो दुरुस्त।
काया रहे निरोग सी,
होय बी मारी पस्त।
तरोताजगी तन में रहे,
मन ज्यों राग मल्हार।
सुबह सबेरे तुम जगो,
समझो काया सार।
दूर निराशा से रहो,
रखो आस को पास।
कर अनुलोम विलोम लो,
शुद्ध रहेगी श्वांस।
तन और मन की पीर का,
प्राणायाम निदान।
आलस्य सारा त्याग कर,
पा लो यह वरदान।
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा,
जनपद-बरेली।
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