पिता

है सृष्टि की  बागडोर  जिसके  हाथ,

वो परमपिता परमेश्वर  ही तो हैं  पालनहार,

है गृह- बागडोर जिसके हाथ,

वो हमारा पिता ही तो हैं पालनहार। 


सहनशील, धैर्यवान, प्यार  करने  वाले,

वो पिता  ही तो हैं जिनकी सोच में  हैं  हम सदा,

शान्त  रहकर  करते रहते,

पूरी  हर ख्वाहिश  सदा।


नहीं  करते  कोई  शिकायत  हमसे  कभी,

बस प्यार  से निभाते रहते फर्ज  सभी,

नहीं  तोल सकते हम उनका  प्यार  कभी,

नहीं  उऋण हो सकते हम उनसे कभी। 


वो तो त्याग  की मूरत हैं,

वो तो बड़े  ही निश्छल हैं,

समझ जाते  नयनों  की भाषा,

पल में  पूरी  करते हमारी  अभिलाषा। 


वन्दनीय  हैं  हमारे  पिता,

ईश्वर  की कृपा  हैं  हमारे  पिता,

हे ईश्वर  रखना  उन पर अपनी  कृपा,

हमेशा  रहे सर पर हाथ  उनका।।


रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।

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