पर्यावरण दिवस

हर वर्ष हम सब मिलकर

पर्यावरण दिवस मनाते हैं 

सच बताना हे मानव

क्या दिल से पेड़ लगाते हैं?

करते हम प्रकृति का दोहन

तनिक विचार ना करते हम,

उठा कुल्हाड़ी, चला मशीनें

अनगिनत पेड़ गिराते  हम।

प्रकृति का संतुलन बिगाड़

सौंदर्य उजाड़ कैसे खुश रह पाते हम?

जीने से मरने तक, निर्भर हैं हम प्रकृति पर

पहुँचकर इसे हर दिन नुकसान

बताओ ना क्या जीना हो पाएगा आसान? 

नित प्रकृति निढाल हो रही

मानव की करनी पर रो रही

कम हो वर्षा या बढ़े तापमान

कम नहीं कर सकते हैं हम अपने अरमान।

बढ़ते कटान से पहाड़ ढह गए

आई बाढ़ तो गाँव खेत बह गए 

एक चिंगारी से सारे जंगल जल गए

देख प्रकृति का दुख, क्या कभी हम रोए?

 पहुँच प्रकृति को नित नुकसान

 हम अपना जीवन बना रहे आसान

कैसे जिएगी भावी पीढ़ी

क्या इस पर किया, हमने कभी विचार

साँस लेने को जीवन वायु ना होगी

ना पीने को पानी होगा

बताओ तो ए मानव तब क्या

जीना तेरा सरल होगा?

संकट कि वह घड़ी ना आए

जीवन हमारा सुखी बन पाए

इस हेतु आओ करें विचार

वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ

आओ सब मिलकर करें प्रचार

 पर्यावरण का जब संरक्षण होगा

 तभी दुनिया में जीवन होगा

दिन रात पसीना बहाते जिनके लिए

भावी पीढ़ी का जीवन सुरक्षित करने के लिए

 कुछ तो जतन करना

बहुत हो गया प्रकृति का दोहन

इस पर रोक लगाना होगा

प्रतिवर्ष लाखों वृक्षों का 

हमें मिलकर रोपण करना होगा

 बना रहे यह सौंदर्य प्रकृति का

अब जतन अधिक करना होगा

जब ध्यान रखेगा मानव तू प्रकृति का

धन्य तेरा जीवन भी होगा

नहीं रहेगी कभी कमी कोई

जीवन भर अन्न, धन, जल होगा।


रचयिता
दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय छतौला,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।



Comments

Total Pageviews