कबीर जयंती
दोहे आज कबीर के, हुए नुकीले तीर।
बनकर औषधि से लगें, हरें हिया की पीर।
मैं-मैं तू-तू कर रहे, कर स्वारथ की बात।
चले मीत के द्वार पर, पाहन लेकर हाथ।
भ्रात सखा बैरी लगे, अगर जो हुए गरीब।
नर जो मालामाल से, रहते सदा करीब।
गर्व न इतना कीजिए, रूप रंग पर आप।
अंत सभी का एक सा, कर लो माला जाप।
घनी नरमता कब भली, मत तू राग अलाप।
शीतल चंदन पालता, अति जहरीले साँप।
कबीर फिर से आ सको, आओ हमरे देश।
धर्म-धर्म के नाम पर, बिगड़ा जन परिवेश।
कुमति-सुमति को ले उड़ी, धरा साधु का वेश।
कबिरा तुम कित छिप गये, तुम्हें बुलाता देश।
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा,
जनपद-बरेली।
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