अंतर्राष्ट्रीय रंजकहीनता दिवस
शरीर में पाया जाता है रंजक,
जिसको कहते मैलेनिन।
करता मानव शरीर के रंग,
का निर्धारण यही।।
कुछ तत्वों की कमी से,
व्यक्ति हो जाता रंजकहीन।
शरीर का रंग हो जाता है कुरूप-बेढंगा।
मरीज सूर्य की रोशनी को,
ना है कभी सह पाता।
देखने की क्षमता हो जाती कमजोर,
बढ़ सकता है वो त्वचा कैंसर की ओर।
इस रोग का दुनिया में कोई इलाज नही,
फिर रही है ये बीमारी समाज मे लाईलाज यूँ ही।
छूत की बीमारी जान इसे,
मरीज को किया जाता तिरस्कृत,
क्योंकि समाज में लोगों को,
नहीं है इसकी जानकारी विस्तृत।
विपरीत परिस्थितियों से,
जूझते रहते हैं इसके मरीज,
हिंसक व्यवहार भी किया जाता।
तिरस्कृत कर उनको समाज से,
बहिष्कृत तक कर दिया जाता।
जादुई शक्ति का मान इन्हें खजाना,
समाज दूभर कर देता इनका पीना-खाना।
करने के लिए इनका कुछ हित,
18 दिसम्बर 2014 को,
एक प्रस्ताव किया गया पारित।
13 जून को हर वर्ष मनाया जाएगा,
अंतर्राष्ट्रीय रंजकहीनता दिवस,
जिससे फिर ना होना पड़े किसी को,
इस समाज से कटने को विवश।
इस रोग की जागरूकता फैलाने का
होने लगे जब प्रयास,
जागने लगी मरीजों के मन में आस।
अंधविश्वास का जान खजाना,
छुआछूत कोढ़ तक इसको माना।
जागरूकता फैलाकर अलख है जगानी,
समाज में तभी खत्म होगी इस रोग
की कहानी।
रचयिता
ब्रजेश सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बीठना,
विकास खण्ड-लोधा,
जनपद-अलीगढ़।
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