झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई
सिखा गई वो, बता गई वो।
झाँसी नहीं दी, यह निभा गई वो।।
बचपन की छबीली मनु बहुत सुंदर थी।
सुंदर से भी ज्यादा बहादुर थी।।
नाना साहब के साथ खेल में शस्त्र चलाती थी।
घुड़सवारी तो मानो शौक में करती थी।।
कपटी अंग्रेजों को धूल चटाई थी।
पुरुष वेश में अंग्रेजी सेना न पहचान पाई थी।
घुड़सवारी तो उसने मानो बहुत जल्दी ही सीखी थी।
मोरोपंत तांबे और भागीरथी जी सरीखी उनके जन्मदाता थे।
गंगाधर राव को खोकर भी झाँसी की रक्षा की थी।।
लार्ड डलहौजी की सेना को पीछे हटने पर मजबूर किया।
ग्वालियर पर उसने अपना राज्य कायम किया।।
दत्तक पुत्र को पीठ पर बाँधकर तलवार चलाती थी
पर उसके घोड़े ने उसका साथ छोड़ दिया।
झलकारी बाई, सुंदर और मुन्दर उनकी सखियाँ थीं।
वो भी अंग्रेजों से लड़ती वीरगति को प्राप्त हुई।।
झाँसी की रानी थी वो, अंग्रेजों से न हार मानी थी।
18 जून, 1828 में नश्वर शरीर छोड़ गई।
पर अंग्रेजों से लड़कर एक अमिट इतिहास छोड़ गई।
रचयिता
सीमा अग्रवाल,
सेवानिवृत्त सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय हाफ़िज़पुर उबारपुर,
विकास क्षेत्र - हापुड़,
जनपद - हापुड़।
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