विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस

कुछ साल पहले तक हमारी कक्षाओं में तमाम बालिकाएँ संकोच और खुला मंच न होने के कारण तमाम  सारी परेशानियों का सामना अकेली ही करती थीं। लेकिन आज मीना मंच एक ऐसा सशक्त माध्यम है  जहाँ  बालिकाएँ बेझिझक अपनी सुगमकर्ता शिक्षिका की मदद से अपनी परेशानी का हल निकाल लेती हैं। मेरा एक अनुभव कुछ  इस प्रकार है-

      

इक दिन अपनी मीना का,

देखा चेहरा मुरझाया सा।

शक्ल पे उसकी  बजे थे बारह,

कक्षा में न था उसका ध्यान, 

पास में  जाकर मैंने पूछा,

क्यूँ सिमटी हो, क्यूँ सिकुड़ी हो?


बोली वो स्कर्ट के पीछे, 

लाल रंग का लगा है  दाग।

 रखकर सिर पर उसके  हाथ,

मैंने यह समझाया, 

घड़ी खुशी  की देखो आज।।


आहट यह है जीवन की सम्पूर्णता का,

स्त्री और बालिका के अस्तित्व का।

हाथ है बहुत अधिक हमें  बनाने में, 

हमें सजाने और सँवारने में।।


मीना  को मिल जाए, 

और अधिक  जानकारी। 

इसलिए उसे दी,

"सहेली की पहेली" पत्रिका न्यारी।।


घर ले जाकर मीना ने,

वह पुस्तक थी पढ़ी।

मीना अगले दिन ही,

लग रही थी कड़ी।।


हो गयी वह समझदार अब,

औरों को समझाती है। 

सदराह व जीवन-कौशल,

सबको वह सिखलाती है।।


बतलाती है सब सखियों को,

रहना तुम अपडेट। 

महीने के उन पाँच दिनों में,

करो इस्तेमाल साफ-सुथरे कपड़े या पैड,

रहना  नहीं तुम कभी  भी सैड।।


चलना-फिरना और नहाना,

है बहुत जरूरी। 

खाना-पीना रखना अच्छा,

नहीं आयेगी कोई कमजोरी।।


पैड को बदलो दिन में, तीन-चार बार, 

या जब भी हो गीला।

आयरन युक्त  आहार  लो,

पड़े शरीर कभी न पीला।।


कभी पेट में गर हो दर्द, 

गरम सेंक करना तुम जल्द।

लेना नहीं  है कोई टेंशन, 

रखना याद तुम यह मेंशन।।


रचयिता

सरिता तिवारी,

सहायक अध्यापक,

कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला,

विकास खण्ड-मसौधा, 

जनपद-अयोध्या।



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