कछुआ

मैं छोटा सा कछुआ हूँ,

पर बड़े-बड़े हैं मेरे काम।

बच्चे, बूढ़े और जवान,

सबने सुना है मेरा नाम।


अपनी धुन में चलता हूँ,

चाहे सुबह हो या हो शाम।

कभी ना आलस करता हूँ,

पहले काम फिर आराम।


आता है कोई संकट जो,

कभी ना मैं घबराता हूँ।

अपने कवच के अंदर ही,

झट से मैं छिप जाता हूँ।


उमरिया मेरी बहुत बड़ी,

सैकड़ों वर्ष मैं जीता हूँ।

स्थल और जल दोनों में,

खुशी के पल मैं जीता हूँ।


शत्रु को चकमा देता हूँ,

कभी ना धीरज खोता हूँ।

रुके कदम ना कभी मेरे,

मंजिल पाकर दम लेता हूँ। 


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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