परिवार

घर-घर नहीं रहे, नहीं रहे वो परिवार

जिनमें एक-दूजे संग होती थी तकरार 


फिर भी मन में नहीं था कोई भेदभाव

इसीलिए रहती थीं घर में खुशियाँ अपार 


पर आज न जाने हमको क्या हो गया है

क्यों हर घर में बन गई नफरत की दीवार 


हर कोई बस केवल एक ही बात दोहराए

छोटा परिवार ही है सुखी परिवार 


सिवाय आजादी के कोई एक कारण बताए

जिसकी वज़ह से बुरा है संयुक्त परिवार 


अच्छे बुरे वक्त में काम अपने ही हैं आते 

दुःख हो जाता आधा, बढ़ता खुशियों का संसार 


आओ क्यों न एक बार फिर करें ये शुरुआत

याद करें हम फिर से अपने पुरखों के विचार 


रचयिता

पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।

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