मजदूर
लू के थपेड़ों सी बन गयी है जिन्दगी,
फिर भी हम गली, चौराहे पर मुस्काते रहे।
मजबूर हैं क्योंकि हम मजदूर हैं,
अश्क मेरी आँखों के हमेशा बताते रहे।।
किसी की जुल्फों में रात कट जाएँगी,
हसीन सपने हम दिन में बुनते रहे।
माया के चक्कर में काया भी ना रही,
पैरों के छाले गीत गा-गा कर बताते रहे।।
मजदूर हूँ कोई ना सुनने वाला मेरी,
फिर भी हम अपने अल्फाज़ सुनाते रहे।
भारत को विकसित चमन बनाने के लिए,
हम खून पसीना हरदम बहाते रहे।।
मेरे खून की कोई कीमत नहीं है यहाँ,
मेरे खून को वे पानी समझते रहे।
कौड़ियों में बेच दिया जिन्होंने जमीर को,
उन पर सारी तुम मोहब्बत लुटाते रहे।।
जितना मिला वतन से उससे ज्यादा दे जाऊँ,
गीत हमेशा हम दिल से गुनगुनाते रहे।।
रचयिता
अजय विक्रम सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।
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