मजदूर

तर्ज - दुश्मन ना करे


जो कर सके ना कोई,

मजदूरों ने वो काम किया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है।


तोड़ सीना भूधरों का,

दरिया बहा दिया।

श्रृद्धा से फिर,

हर काम को अंजाम दिया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है.....


बना के ऊँची बिल्डिंगें,

घर हमको हैं दिए।

फुटपाथ पर,

खुद फिर आराम किया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है......


अपने खून पसीने से,

वसुंधरा को सींचते।

मेहनत से अपनी,

धरा का श्रंगार किया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है.......


खाते हैं रूखी रोटी,

सोते हैं चैन से।

ईमान धरम,

से ना मोल भाव किया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है......


माना नहीं धनवान वो,

पर दिल से अमीर हैं।

फिर भी ना जग ने,

उनको सम्मान दिया है।

मुमकिन जहां का,

हर एक काम किया है......


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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