विश्व परिवार दिवस
कितना प्यारा कितना सुन्दर होता है परिवार,
सुख में दुःख में सदा साथ निभाता है परिवार।
काका, बाबा, दादा लेते, निर्णय हो जब कोई बड़ा,
मम्मी, दादी, चाची, बुआ देतीं, बच्चों को संस्कार।
थक हार जब घर को लौटें, दर्द रहे भरपूर,
मासूम हँसी-बोली से भागे, कष्ट वो हर बार।
सबको समान हक मिलता, कामगार या नाकाम,
हाथ बँटाते एक दूजे का, सपना करे साकार।
माँ की ममता वट वृक्ष है, पिता आकाश समान,
परिवार जीवनदायी अमृत, ईश्वर का उपहार।
हालात हों घर के अच्छे-बुरे या हो एक समान,
अनुशासन सिखाता हमको, कर्तव्य बताये हर बार।
जज्बातों में जब छलकें आँसू, हृदय भरे हों घाव,
अपनों का मरहम मिलता, लम्हा बने वो यादगार।
धन दौलत के पीछे भागें, जन मानस बेज़ार,
अपनों के एहसास नहीं जहां, जीवन है बेकार।
तन्हा-तन्हा हर शख़्स है, है पैसा अपरम्पार,
हर सुख से वो वंचित है, जिसका नहीं परिवार।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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