परिवार हो

कभी तो घर में साथ में बैठा पूरा परिवार हो।,

आपाधापी की दुनिया में छोटा सा संसार हो।।

आँखों पर मोटा चश्मा है,

उसमें बसता एक सपना है,

कभी तो इन बूढ़ी आँखों का सपना साकार हो।

कभी तो घर में साथ में बैठा पूरा परिवार हो।

रहते हैं अकेले दिन भर वो,

बेचैन से बैठें घर पर जो,

"बच्चे आएँगे" कभी तो ये पूरा इन्तजार हो।

कभी तो घर में साथ में बैठा पूरा परिवार हो।

ऊँचा उड़ने के ख्वाब थे नये,

आएँगे फिर कह कर थे गए,

माली की खाली बगिया में फिर चमन गुलजार हो।

कभी तो घर में साथ में बैठा पूरा परिवार हो।


रचयिता

पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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