महाराणा प्रताप
त्याग, वीरता और रण पराक्रमी जाने जाते थे
राणा सिसोदिया राजपूत वंश के वीर राजा थे।
उदय सिंह, जयवंता बाई के थे वह पुत्र,
भीलों संग खेले-खाये, कहलाये सुपुत्र।
राणा राजपूताना के थे शौर्य और शान,
चेतक की सवारी करते, शूरवीर महान।
चलते हवा की चाल, बरछी, ढाल, कृपाण चलाते,
मुगल सेना थर्राती उनसे, नाम से शत्रु भाग जाते।
घास की रोटी खाई फिर भी, नहीं झुकाया शीश,
मातृभूमि पर नतमस्तक हो, बड़ों का लेते आशीष।
तेज भुजाओं में उनके, लोहे सी वो शक्ति रखते थे,
मांसपेशियाँ पत्थर जैसी, फौलादी सीना रखते थे।
राणा की वीरता के आगे, नभ भी शीश झुकाता था,
आर्यवर्त राणा प्रताप के, गीत बसंत भी सुनाता था।
राणा प्रताप की जय घोष गूँजें, सदा नभथाल,
गर्वित हो मस्तक भारती का, लगे चन्दन भाल।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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