मेरी माँ प्यारी सी गुल्लक

मेरी माँ प्यारी सी गुल्लक,

जिस पर है हम सबका हक,

भैया हो या दीदी हो,

सब पर प्यार लुटाते हो।

माँ मेरी प्यारी सी गुल्लक,

 जब भी देती हूँ दस्तक,

पाऊँ उसका असीम दुलार,

मन हारे तो समझाए बार- बार।

 माँ मेरी प्यारी सी गुल्लक,

गिनती गाए जब-जब वो दस तक,

गुस्सा- नाराजगी सब भूल जाऊँ,

झट से माँ के आंचल में छुप जाऊँ।

 माँ मेरी प्यारी सी गुल्लक,

वो तो है घर की रौनक,

सब पर लुटाए दौलत बेशुमार,

 अपने लिए है ठन-ठन गोपाल।

ममता की इस गुल्लक में,

 दुआओं के वो सिक्के हैं,

 खर्च न करना कभी इन्हें,

 यह जिंदगी के खेल के इक्के हैं।


रचयिता

भारती मांगलिक,

सहायक अध्यापक,

कम्पोजिट विद्यालय औरंगाबाद,

विकास खण्ड-लखावटी,

जनपद-बुलंदशहर।



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