बुद्ध पूर्णिमा
देह तो है स्वच्छ पर आत्मा नहीं है शुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।
अन्तर्मन की इच्छा के, होना पड़ता विरुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
सुख सुविधा का भला कौन करे परिहार,
मोह-माया में घिरे पड़े कौन तजे संसार।
बिना स्वार्थ के कौन प्रभु से प्रेम करे परिशुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
संगी-साथी और परिवार का कौन न चाहे साथ,
दूसरों के दुःख से दुःखी हो कौन बढ़ाए हाथ।
मंज़िल नहीं आसान ये इतनी है मार्ग बड़ा अवरुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
करूणा जागी देख के पीड़ा लगा लिया फिर ध्यान,
अनगिनत प्रश्न थे मन में जगा रहे थे आत्मज्ञान।
सत्य के पथ पर चले और आडंबर के घोर विरुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
आओ बन कर दीपक फैला दे अंधकार में उजियारा,
मधुर वाणी अपनाकर बने दीन दुखियों का सहारा।
बुद्ध की राह जो अपनाए तो चले अविरत, अनिरुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
सत्य, अहिंसा और करुणामय हो करे जीवों से प्यार,
परहित का भाव धर कर मानवता को अंगीकार।
बुद्धम् शरणम् गच्छामि से हो जाता सब शुद्ध,
ऐसे ही नहीं बन सकता कोई महात्मा बुद्ध।।
रचयिता
पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।
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