तिरंगा

तिरंगा शान है अपनी,
तिरंगा जान है अपनी।
कि धरती और अम्बर तक,
यही पहचान है अपनी।

बढ़ाकर शान दुनिया में,
यही लहराएगा इक दिन।
कि हर इक जाति मज़हब के,
दिलों में छाएगा इक दिन।
तिरंगा राष्ट्र का गौरव,
अधर मुस्कान है अपनी।
कि धरती और अम्बर तक,
यही पहचान है अपनी।
तिरंगा शान है,,,,,,,,,,।

जल-थल-वायु सेना का,
यही साहस पराक्रम है।
कि पल-पल देशभक्तों को,
हर्षाता ये परचम है।
यही संगीत जीवन का,
सुर-लय-तान है अपनी।
कि धरती और अम्बर तक,
यही पहचान है अपनी।
तिरंगा शान है,,,,,,,,,,,।

हरित रंग, श्वेत, केसरिया,
साहस, शान्ति, हरियाली।
रहो गतिमान कहता चक्र,
आये पास खुशहाली।
सभी धर्मों औ' संस्कृति के,
गुणों की खान है अपनी।
कि धरती और अम्बर तक, ओ
यही पहचान है अपनी।
तिरंगा शान है,,,,,,,,,,,।

युगों तक ये तिरंगा यूँ ही,
लहराता ही जाएगा।
कि जब तक चाँद-तारे हैं,
सुयश पाता ही जाएगा।
यही है राग जीवन का,
यही तो जान है अपनी।
कि धरती और अम्बर तक,
यही पहचान है अपनी।
तिरंगा शान है,,,,,,,,,,,।

रचयिता
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य',
सहायक अध्यापिका,
राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय,
शक्तिफार्म नंबर--5 , 
विकास खण्ड-सितारगंज,
जनपद-ऊधम सिंह नगर,
उत्तराखण्ड।

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