कूड़े के ढेर से

मुख जिनके कालिमा से हुए भरे,
सूखा कृषकाय इनका बदन।

छान रहे थे ये कुछ कूड़े में,
ये नन्हें करते रोटी का जतन।

माँगते दर-दर भीख ये कुछ,
जिन्हें देख मन में होती चुभन।

क्यों ये नन्हें फूल मुरझा रहे,
क्यों न ये भी पकड़ें कलम।

कर लिया है अब आगाज मैंने,
ढूँढ इन्हें लाऊँ ये मेरा मिशन।।

पढें ये भी, समाज में आगे बढ़ें,
संस्कृति से हो इनका मिलन।

मिलें नई -नई दिशाएँ  इन्हें,
स्वस्थ समाज का मिले वतन।

भले चुनौती है कठिन पर,
इन्हीं कलियों में रमा मेरा मन।

हर तरह के कौशल ये सीखें,
दे पाऊँ इन्हें इक नया जनम।

खोज पाऊँ कूड़े के ढेर से भी,
हीरे ऐसे जो जगमगा दे चमन।

रचयिता
गायत्री पांडे,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय संजयनगर 1,
विकास खण्ड-रुद्रपुर,
जनपद-उधम सिंह नगर,
उत्तराखण्ड।

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