विद्यालय की यादें

कक्षा की शरारतें
बेवजह सबकी बातें
साथियों को च्यूंटी खींचना
रैम्प में घसीटना
हेडमास्टर का समझाना
शिक्षकों का डाँटना
सब याद आ रहा है
मौज-मस्ती का आलम
कहाँ खो गया है।।

प्रार्थना में देर से जाना
एक आँख खोल सबको सताना
डाँट पड़ने पर चुप हो जाना
बाद में धीरे से मुस्कराना
सब याद आ रहा है
मौज-मस्ती का आलम
कहाँ खो गया है।।

लड़ना -झगड़ना
चुपके से पैन चुराना
शिकायतों का पुलिंदा
टीचर से जा सुनाना
शरारतों का थैला भरा जा रहा है
मौज मस्ती का आलम
कहाँ खो गया है।।

दोस्तों से मिलना
शिक्षकों से सीखना
स्कूल के प्रांगण में
चहलकदमी करना
विज्ञान और गणित पर
रोज ध्यान देना
हिन्दी विषय में अक्सर
टीचर से डाँट खाना
सब याद आ रहा है
मौज मस्ती का आलम
कहाँ खो गया है।।

देखता हूँ सपना
विद्यालय खुल गया है
कांधे उठाए बस्ता
स्कूल पहुँच गया हूँ
तेज स्वर में बच्चे
पहाड़ा सुना रहे हैं
अब मेरा मन मचल रहा है
मौज मस्ती का आलम
कहाँ खो गया है।।

इस महामारी से
हम सबको लड़ना है
घर में बैठकर
ऑनलाइन ही पढ़ना है
मेरी टीचर सभी बतातीं
पहले अपनी जान बचाना है
की बार हाथों को धो लो
जरुरत हो तभी घर से निकलो
मास्क लगाकर बाहर आना
अभी न किसी को गले लगाना
मेरे दोस्त सब बिछड़ गए हैं
मौज मस्ती का आलम
जाने कहाँ खो गया है।।

रचयिता
ज्योति अग्निहोत्री,
प्राथमिक विद्यालय शेखनापुर घाट,
विकास खण्ड-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।

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