मैं बाघ

मैं शक्तिमान, भारत की शान,
मैं  हूँ सतर्क और धौर्यवान,
मैं बुद्धिमान, जंगल की जान,
अब संकट में हैं, मेरे प्राण,

मानव की बढ़ती इच्छा ने,
जब मेरे वन को लील लिया,
मैं क्यों आया इस बस्ती में?
फिर मानव ने यह प्रश्न किया।

मैं ढूँढ रहा अवशेष वहाँ,
जहाँ घर मेरा कभी होता था,
घनघोर अंधेरे वन में मैं,
स्वच्छंद विचरण करता था।

मेरे घर को धीरे-धीरे,
कंक्रीट का जंगल निगल रहा,
और मुझे बचाने का हरदम,
यह शोर कैसा मचा हुआ?

मेरा महत्व समझे मानव,
और बात यह भी समझे वो,
जब जंगल हों तब ही मैं हूँ,
वरना विलुप्त पाए मुझको।

करके मुझको घर से बेघर,
संरक्षण को वह शोर करे,
मेरे वन में देता है दखल,
मेरी तो आहट से भी डरे।

मेरे घर का दोहन करके,
वन्यजीव संहार किया,
भूले भटके अपने घर में,
गोली से सत्कार किया।

खाद्य श्रृंखला रहे संतुलित,
और जंगल और जीव रहें,
पर्यावरण जब रहे सुरक्षित,
तब ही मानव जीवन भी बचे।

मेरे संरक्षण को मानव,
यूँ ही झंडा फहराओगे,
मेरी विलुप्ति के कारण में,
तुम स्वयं को दोषी पाओगे।

रचयिता
पूनम दानू पुंडीर,
सहायक अध्यापक,
रा०प्रा०वि० गुडम स्टेट,
संकुल-तलवाड़ी,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली, 
उत्तराखण्ड।

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