परिवार

किसे कहते हैं परिवार?
सब मिल जुल जहाँ रहते साथ,
कभी झगड़ते, रूठते, कभी मनाते
फिर हो जाते सब एक साथ
बँधी रहती एक प्यार की डोरी
बाँट लेते सुख दुःख हजार
उसे कहते हैं परिवार।
.......
दादा -दादी, ताऊ-ताई, पापा-मम्मी
बच्चों की देखो किलकार।
नाना, नानी, मामा, मौसी,
और हैं कई रिश्ते अपार।
रूठते मनाते भाई बहनों का
आपस में है ये कैसा प्यार,
यही तो होता है परिवार...

हो शादी, नामकरण या त्योहार
ढोलक, ढोल, मजीरा बाजे।
और बाजे पायल की झनकार।
बजे शहनाई और मसक बीन,
बच्चे, बूढ़े नाचें, हो जाएँ रंगीन।
मनाएँ होली, दीवाली का त्योहार।
उसे ही तो कहते हैं परिवार।

कहीं जनम  तो कहीं मरण है
कहीं नामकरण तो कहीं लगन है,
कहीं खुशी तो कही रुदन है।
सुख दुःख में साथ रहें हम,
जो हमें सिखाता बारम्बार
उसे ही कहते हैं परिवार...
उसे ही कहते हैं परिवार....

रचयिता
ज्योति पंत,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय जलना,
विकास खण्ड- लमगड़ा,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।

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