अभी तो जाना न था

अभी  तो  जाना न था, विदा  ले रहा  हूँ मैं,
वर्षों मातृभूमि की सेवा करना चाहता था मैं।

कायर न  था, कायरों   से  घिरा  था  मैं,
अभिमन्यु सा चक्रव्यूह, तोड़ना चाहता था मैं।

काम अधूरे छोड़ रहा, मुक़ाम  अधूरे हैं मेरे,
पूरा करना प्रिय तुम, जो अरमानों के मेले मेरे।

मधुर स्मृति मधुमासों में, स्मरण करोगी तुम,
एकांत न होकर खुद में, मुझको पाओगी तुम।

विरह वेदना के भाव सागर, नयन अश्रुपूरित हों जब,
देख हमारे बच्चों को, सुखद मनोहर स्वप्न होना तब।

आभास मुझे यहाँ होता,  माँ तेरी अथाह  वेदना
अब भी  मानो ढूँढ रहा, मैं तेरी गोदी का  कोना।

दूर भले गया हूँ तुझसे, मातृभूमि के गौरव  में,
सदा रहूँगा माँ, तेरी आँखों  का  नयन तारा मैं।

अपनी मिट्टी से जुड़ा, मातृभूमि के लिए आता रहूँगा,
समर भूमि में दुश्मन को, यूँ ही सदैव ललकारता रहूँगा।

रचयिता
सन्नू नेगी,
सहायक अध्यापक,
रा0 उ0 प्रा0 वि0 सिदोली,
विकास खण्ड-कर्णप्रयाग, 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

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