बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

दहेज से करो परहेज़
दहेज़ एक ऐसी बीमारी है,
चिंतित हैं हर वो ग़रीब माँ-बाप,
जिनकी बेटी अभी कुँवारी है।
डर है उन्हें बाद भी शादी के,
हाल न सुनने पड़ें बेटी की बर्बादी के।
फैलती समाज में क्यों ये बुराई है,
नारी है शिक्षित उसमें हर अच्छाई है।
     घर के आँगन की तुलसी से,
      बड़े-बड़े दफ्तरों की कुर्सी तक।
कहीं समाज सेवा का रूप,
तो कहीं राजनीति की लड़ाई।
पाया सेना पुलिस में शौर्य,
तो क़ायम की अंतरिक्ष की भी ऊँचाई।
छुआ गगन को तो नाप ली समुद्र की भी गहराई।
   तो क्या नारी में है अब बुराई?
गर नही...
तो समाज में आज़ भी जलती क्यों बहू है?
ससुराल में आज़ भी बहता क्यों उनका लहू है?
  तो आज़ के युवा वर्ग संकल्प लें आप,
दहेज़ लेना और देना भी है महापाप।
   दहेज़ से करो परहेज
   दहेज़ से करो परहेज
तभी बनेगी जिंदंगी फूलों की सेज।।
नारी को दें पूर्ण सम्मान,
बढ़ाओ सबका मान।

रचयिता 
मोनिका रावत,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय पैठाणी,
विकास खण्ड-थलिसैण, 
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

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