चलो धरती का श्रृंगार करें

चलो धरती का श्रृंगार करें,
खाली जगहों को पेड़ लगाकर भरें।

जब होंगे वृक्ष धरा पर हरे-भरे,
देख उनको खिल उठेंगे सभी के चेहरे।

पंछी उस पर करेंगे सुबह-शाम कोलाहल,
बच्चे खेलेंगे-कूदेंगे और राहगीर आराम करेंगे कुछ पल।

कुछ तो देंगे हमें मीठे रसीले फल,
अगर नहीं कुछ तो मिलेगा वृक्षों से फ्यूल।

पेड़ होते हैं धरा के श्रृंगार,
कष्ट कितना भी मिले फिर भी सबसे बड़े दानवीर। 

अपनी एक भी चीज को नहीं लेते,
चाहे कितना भी कष्ट क्यों न मिले।

पशु-पक्षियों को देते आश्रय और भोजन,
इंसान लेता छाया, साथ में लेता ईंधन और भोजन।

अपना फल कभी नहीं खाते हैं,
और नहीं कभी ठण्ड से बचने के लिए ईंधन जलाते हैं।

सबको दे छाया धूप से बचाते हैं, 
जबकि खुद छाया कभी नहीं पाते हैं

आओ हम मिल धरा पर वृक्ष लगाते हैं,
हवा और पानी से मृदा को कटने से बचाते हैं।

पेड़ जितना अधिक हम लगाएँगे,
उतनी ही शुद्ध ऑक्सीजन हम पाएँगे।

चलो धरती का श्रृंगार करें,
आओ हम मिल वृक्षारोपण करें।

रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,          
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।

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