जल संरक्षण
पानी बचाना कर्म बना लो,
पानी को ही धर्म बना लो,
पानी बिन सब कुछ मुश्किल है,
पानी बिन न कुछ हासिल है।
धरती बिन पानी के तरसे,
बादल से भी जल न बरसे,
जीवन का न कोई भरोसा,
पानी बचा लो अभी है मौका।
कुएँ, तालाब और नदियाँ,
इनका रखें ध्यान,
बीत जाएगा जब समय,
पछताएगा इंसान।
जल संरक्षण नियम बना लो,
बूँद-बूँद से ताल बचा लो,
वर्षा का जल करके इकठ्ठा,
प्यासे जीवों की प्यास बुझा लो।
जल के प्रयोग को कम कर दो तुम,
जल को व्यर्थ न बहने दो तुम,
जलस्रोतों की देखभाल से,
जल का पुनरुद्धार करो तुम।
पेड़ और वन की कटाई,
हो रही लगातार,
पशु-पक्षी व्याकुल हैं,
लुट रहा घर-बार।
वृक्ष अधिक से अधिक लगाओ,
मृदा अपरदन से बचाओ,
पेड़ ही वाष्पीकरण बढ़ाते,
पेड़ों से धरती नम बनाओ।
जल-स्तर घट रहा निरंतर,
नल बंद कर दो तुम प्रयोग कर,
छोटे-बड़े तालाब बनाकर,
करो वर्षा जल का संरक्षण।
नदियाँ हमारी माँ हैं,
मानते हैं हम,
फिर क्यों उनके जल को,
प्रदूषित करते हम?
नदी स्वच्छता ध्यान है धरना,
नदी प्रदूषित अब न करना,
नगरों के गंदे पानी को,
नदियों से अब दूर है करना।।
नदी प्रदूषण कम होगा जब,
जलीय जंतु जी जाएँगे तब,
नदियों का जल शोधन करके,
पेयजल बनाएँगे तब।
थोड़ी सी तुम कोशिश कर लो,
थोड़ी सी हम कोशिश कर लें,
एक-एक ग्यारह हम बनकर,
धरती को जल से तर कर लें।
रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।
पानी को ही धर्म बना लो,
पानी बिन सब कुछ मुश्किल है,
पानी बिन न कुछ हासिल है।
धरती बिन पानी के तरसे,
बादल से भी जल न बरसे,
जीवन का न कोई भरोसा,
पानी बचा लो अभी है मौका।
कुएँ, तालाब और नदियाँ,
इनका रखें ध्यान,
बीत जाएगा जब समय,
पछताएगा इंसान।
जल संरक्षण नियम बना लो,
बूँद-बूँद से ताल बचा लो,
वर्षा का जल करके इकठ्ठा,
प्यासे जीवों की प्यास बुझा लो।
जल के प्रयोग को कम कर दो तुम,
जल को व्यर्थ न बहने दो तुम,
जलस्रोतों की देखभाल से,
जल का पुनरुद्धार करो तुम।
पेड़ और वन की कटाई,
हो रही लगातार,
पशु-पक्षी व्याकुल हैं,
लुट रहा घर-बार।
वृक्ष अधिक से अधिक लगाओ,
मृदा अपरदन से बचाओ,
पेड़ ही वाष्पीकरण बढ़ाते,
पेड़ों से धरती नम बनाओ।
जल-स्तर घट रहा निरंतर,
नल बंद कर दो तुम प्रयोग कर,
छोटे-बड़े तालाब बनाकर,
करो वर्षा जल का संरक्षण।
नदियाँ हमारी माँ हैं,
मानते हैं हम,
फिर क्यों उनके जल को,
प्रदूषित करते हम?
नदी स्वच्छता ध्यान है धरना,
नदी प्रदूषित अब न करना,
नगरों के गंदे पानी को,
नदियों से अब दूर है करना।।
नदी प्रदूषण कम होगा जब,
जलीय जंतु जी जाएँगे तब,
नदियों का जल शोधन करके,
पेयजल बनाएँगे तब।
थोड़ी सी तुम कोशिश कर लो,
थोड़ी सी हम कोशिश कर लें,
एक-एक ग्यारह हम बनकर,
धरती को जल से तर कर लें।
रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।
Very nice poem.
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