अभिलाषाओं के अंचल पर
मन के सजते सपने
अपने बन जो जाते हैं।
अभिलाषाओं के अंचल पर
पर लहराते हैं।
मुझको पाना है - जाना है
ये तरुणाई कहती है,
जीवन की इस झंझा में ही
शहनाई भी बजती है।
उन शिखरों की चाहत
जो अन्तर में लाते हैं,
वो पलते अरमानों की
तस्वीरें बनते जाते हैं।
पल-पल बढ़ने से ही
मंजिल मिल जाती है,
सहकर कष्टों को वो
ताकत ही बन जाती है।
यह जीत समर जीवन की
सब कहते जाते हैं
जो होता है दुर्लभ
जीवट वाले पा जाते हैं।
अभिलाषाओं के अंचल पर
पर लहराते हैं।
नन्हें-नन्हें से सपने मन के
राह नयी दिखलाते हैं।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
अपने बन जो जाते हैं।
अभिलाषाओं के अंचल पर
पर लहराते हैं।
मुझको पाना है - जाना है
ये तरुणाई कहती है,
जीवन की इस झंझा में ही
शहनाई भी बजती है।
उन शिखरों की चाहत
जो अन्तर में लाते हैं,
वो पलते अरमानों की
तस्वीरें बनते जाते हैं।
पल-पल बढ़ने से ही
मंजिल मिल जाती है,
सहकर कष्टों को वो
ताकत ही बन जाती है।
यह जीत समर जीवन की
सब कहते जाते हैं
जो होता है दुर्लभ
जीवट वाले पा जाते हैं।
अभिलाषाओं के अंचल पर
पर लहराते हैं।
नन्हें-नन्हें से सपने मन के
राह नयी दिखलाते हैं।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
Nice
ReplyDeletePlease write your name.
DeleteVery very thanks.