माँ तुम महान हो
माँ हमसे प्यार क्यों इतना भला तुम यूँ ही करती हो
कभी लोरी सुनाना तो, कभी यूँ गीत गाती हो।
ममता की छाँव में माँ, तुम हमको सुलाती हो,
कभी उँगली पकड़ के तुम हमें चलना सिखाती हो।
मुझे बचपन की बातें अब भी मुझको याद आती हैं।
माँ हमसे - - - - - - - - - - - -
दुख की धूप में माँ तुम सुख की छाया करती हो,
आशाओं के आँगन में खुशी के दीप जलाती हो।
हमारी हर कामनाएँ माँ क्यों पूरी करती हो।
माँ हमसे प्यार - - - - - - - -
दुःखों से टूटकर जब मैं खुद को तन्हा पाती हूँ,
अकेले ही अकेले में घबरा सी ही जाती हूँ।
तुम्हारी एक झलक मुझमे आशा दीप जलाती हैं।
माँ तुम हमसे - - - - - -- -- -
माँ तुम इतनी प्यारी, इतनी प्यारी, इतनी प्यारी क्यों हो तुम।
रचयिता
चारु मित्रा,
कभी लोरी सुनाना तो, कभी यूँ गीत गाती हो।
ममता की छाँव में माँ, तुम हमको सुलाती हो,
कभी उँगली पकड़ के तुम हमें चलना सिखाती हो।
मुझे बचपन की बातें अब भी मुझको याद आती हैं।
माँ हमसे - - - - - - - - - - - -
दुख की धूप में माँ तुम सुख की छाया करती हो,
आशाओं के आँगन में खुशी के दीप जलाती हो।
हमारी हर कामनाएँ माँ क्यों पूरी करती हो।
माँ हमसे प्यार - - - - - - - -
दुःखों से टूटकर जब मैं खुद को तन्हा पाती हूँ,
अकेले ही अकेले में घबरा सी ही जाती हूँ।
तुम्हारी एक झलक मुझमे आशा दीप जलाती हैं।
माँ तुम हमसे - - - - - -- -- -
माँ तुम इतनी प्यारी, इतनी प्यारी, इतनी प्यारी क्यों हो तुम।
रचयिता
चारु मित्रा,
सहायक अध्यापक,
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