शिक्षक केवल गुरु नहीं

शिक्षक केवल गुरु नहीं,
बनकर एक परिवार।
एक अकेला खे रहा,
नदी में नौका चार।
बच्चा जब रोता हुआ,
आए प्रथम दिन क्लास।
माँ बनकर के प्यार से,
उसे बिठाए पास।।
कुछ दिन बीते वही गुरु,
बनकर पिता समान।
सही जगह बिठलाता है,
भरने नई उड़ान।।
जब जब उसको डर लगे,
या हो कोई वहम,
बनकर उसकी बड़ी बहन,
दूर करे सब भ्रम।।
पढ़े-लिखे खाए पिए,
या फिर खेले खेल,
भाई सदृश वो शिक्षक,
रखता उससे मेल।।
दुख में उसके दुखित हो,
खुशी में जो मुस्काए।
बालक का परिवार बन,
अध्यापक उसे पढ़ाए।।

रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

Comments

  1. बहुत सुन्दर भाव।
    स०चन्द्र"कौशिक"

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  2. सुन्दर शब्द चयन

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