यही कर दिखाएँ
चलो दीप झिलमिल, नये हम जलाएँ,
अशिक्षा तिमिर अब, यहाँ पर मिटाएँ।
बने ज्ञान बाती, विचारों की सुन्दर,
सतत कर्म निष्ठा रहे नित्य अन्तर।
चलो हम सभी को नया पथ दिखाएँ।
ज्ञान की नई किरण अब हम सजाएँ।
सघन है निशा का अंधेरा वो तब तक,
सुबह का नया रवि निकलता न जब तक।
उदित रवि नवल हो विश्वास तो बढ़ाएँ,
हर पंथ रवि ज्ञान के अगर जगमगाएँ।
मशालें जलाकर हम सभी चल पड़े हैं,
मिशन संवाद शिक्षण के संग हम बढ़े हैं।
सम्मान गौरव प्रतिष्ठा पल पल बढ़ाएँ,
प्रगति की नई हम, अब दिशाएँ दिखाएँ।
ये नन्हें-नन्हें से प्यारे नये हैं सितारे,
सुशिक्षित बनें सब यही हैं सपने हमारे।
प्रेम अनुराग ममता हृदय में जगाएँ,
सभी में जो प्रतिभा वही अब लगाएँ।
राष्ट्र शिल्पी हैं शिक्षक, शिक्षक ही प्रहरी,
उसी से चमकती है, आभा सुनहरी।
समुन्नत हो भारत, यही कर दिखाएँ,
सुशिक्षित हो भारत, सभी को बताएँ।
चलो दीप झिलमिल- - - - - - -
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
अशिक्षा तिमिर अब, यहाँ पर मिटाएँ।
बने ज्ञान बाती, विचारों की सुन्दर,
सतत कर्म निष्ठा रहे नित्य अन्तर।
चलो हम सभी को नया पथ दिखाएँ।
ज्ञान की नई किरण अब हम सजाएँ।
सघन है निशा का अंधेरा वो तब तक,
सुबह का नया रवि निकलता न जब तक।
उदित रवि नवल हो विश्वास तो बढ़ाएँ,
हर पंथ रवि ज्ञान के अगर जगमगाएँ।
मशालें जलाकर हम सभी चल पड़े हैं,
मिशन संवाद शिक्षण के संग हम बढ़े हैं।
सम्मान गौरव प्रतिष्ठा पल पल बढ़ाएँ,
प्रगति की नई हम, अब दिशाएँ दिखाएँ।
ये नन्हें-नन्हें से प्यारे नये हैं सितारे,
सुशिक्षित बनें सब यही हैं सपने हमारे।
प्रेम अनुराग ममता हृदय में जगाएँ,
सभी में जो प्रतिभा वही अब लगाएँ।
राष्ट्र शिल्पी हैं शिक्षक, शिक्षक ही प्रहरी,
उसी से चमकती है, आभा सुनहरी।
समुन्नत हो भारत, यही कर दिखाएँ,
सुशिक्षित हो भारत, सभी को बताएँ।
चलो दीप झिलमिल- - - - - - -
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
Nice poem
ReplyDeleteBahut bahut aabhar.
Delete