आज आए हैं घर गोपाल

1
धूरि भरे अति सुन्दर श्याम सलोने।
सुन्दर सुरुचि बनी सिर चोटी।
आँगन खेलत औ खात हैं रोटी।
बाजै पैंजनिया है पीरी लँगोटी।
सुन्दर छवि रसखान जो देखे,
सब न्योछावर इच्छा मन कोटी।
कागा के भागि बड़े भए भैय्या,
प्रभु हाथ से लै उड़ि गयो रोटी।
हाथे में लाठी काँधे पे कमरी,
वन गैंय्या चराए सुख पइहौं।
सिद्धि रिद्धि सब तजि डारी,
राज न चाहूँ ना महल अटारी।
नैनन से लखि ब्रज के कानन
आनंद जग से ऊँचे ही लैहौं।
छप्पन भोग का लोभ न लाऊँ,
रूखी सूखी प्रेम से नित खैहौं।

2
आज आए हैं घर गोपाल।
श्याम सजीले नटवर नागर,
षोडस कलानिधि गुण आगर।
पाकर धन्य भई माँ जिनको,
जगत में कहलाते नंदलाल।
   आज आए हैं घर गोपाल।
यमुना जल की अगम लहर में,
वसुदेव जी लाए गोकुल नगर में।
माता यशोदा की गोदी में खेले,
जग में कहाए जसुमति लाल।
      आज आए हैं घर गोपाल।
वंशी धुन सुन सुधि बुधि खोए,
विछुड़त ग्वाल बाल सब रोए।
गोपी गीत यथा सुनि सुख पायो,
सबके प्रभु हैं मदन गोपाल।
     आज आए हैं घर गोपाल।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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