जल

एक प्यासे मनुष्य की व्यथा.........

नीर का घट मुझे दिखला दो जरा
प्यासे कंठ को पानी पिला दो जरा।
नीर का घट  मुझे दिखला दो जरा।

अधरों की प्यास नयन में समाई
लोचन का भी जल वो सुखा ले गयी
तोय अदृश्य हुआ धरा से कहाँ
कौन तृष्णा उसे बहा ले गयी
नीर का घट मुझे दिखला दो जरा

वो कुएँ, वो सरिता, वो झीलें कहाँ
मेघों में भी अम्बु नदारद हुआ
है प्यासी ये धरती, है पावस कहाँ
सोंधी सी वो खुशबू लौटा दो जरा
नीर का घट मुझे दिखला दो जरा

विटप को मेह का मिलन है भाता
धरती का भी तब रूप सुहाता
कागज पर है पेड़ों की संख्या बहुत
कोई वसुधा पर इनको लगा दो जरा
नीर का घट मुझे दिखला दो जरा

सागर की भी बूँदें हैं खोयीं हुई
अम्बर की भी आँखें हैं सोयीं हुई
सावन भी है हमसे रूठ गया
कोई इनमें भी बूँदें बरसा दो जरा
नीर का घट मुझे दिखला दो जरा

जल ही जीवन है, इसको करो न व्यर्थ
इसका करना है संरक्षण
जो यह रूठा, रूठी सृष्टि
कहाँ से लाओगे तुम वृष्टि
नीर का घट मुझे दिखला दो जरा
प्यासे कंठ को पानी पिला दो जरा

रचयिता
शालिनी श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय दवोपुर,
विकास खण्ड-देवकली, 
जनपद-गाज़ीपुर।

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