नई इक सुबह

सघन तम मिट रहा है,
सुबह हो रही है।
सृजन की किरण नव,
चली आ रही है।

देखता हूँ दृगों से
नया दृश्य उज्जवल,
चमकता हुआ आज,
विश्वास झिलमिल।
बहुत ही दिए अब,
नये जल रहे हैं।
स्वप्न के लोक जैसे,
हौंसले पल रहे हैं।
        नई इक सुबह सी,
          यहाँ हो रही है।
          निराशा में आशा,
             नई भर रही है।

विश्वास मन का,
हमें अब जगाना।
नई ज्योति जगमग,
हमें फिर जलाना।
राष्ट्र रूपी चमन को,
बना देने मधुवन।
हम सभी के लिए,
जरूरी समर्पण।
मैने देखा है सबमें,
नई भावना आ रही है।
नई इक सुबह सी,
यहाँ हो रही है।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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