कृष्ण रूप

कृष्ण के जानो विविध  रूप,
कभी शान्तिदूत कभी क्रान्तिदूत।

जब प्यार में हों तो बंशीधर,
क्रोध की लपट में चक्रधर।

वो मोर मुकुट वो नन्दलाला,
वो माखनचोर जग का रखवाला।

बालपन में बन गये दधि लुटैया,
जशोदा के सुत वो कृष्ण कन्हैया।

गोपियों संग रास उठाया गोवर्धन,
कंस का संहार, किया कालिया मर्दन।

सब हों जाए मुग्ध ऐसी वंशी कि तान,
दुश्मनों के दुश्मन, वे मित्रता की शान।

देवकी का नन्दन यशोदा का लाल,
वसुदेव का सुत तू नन्द का गोपाल।

ज्ञानियों का गुन्थन तू गीता का ज्ञान,
पांडवों के साथ तुम अर्जुन की  जान।

गोपियों के प्रिय रुक्मिणी का प्यार,
थे तुम राधामय यही प्यार का था सार।

रचयिता 
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।

Comments

Post a Comment

Total Pageviews

1164453