दिल- मिलन

बदल रहा है वक्त और बदल रहा है दिल।
ऐ गुलिस्ता के सुमन, तुम भी जाओ खिल।।

रंगीन फिजां को न जाने, किसकी लगी नजर।
दिल भी बँटे, मन भी बँटे; किसी को न हुई खबर।।
वो वक्त आलिम का था, या वो था जाहिल।
बदल रहा है वक्त -----------------।।-1

अरसों से हम यूँ ही, दिल जलाते रहे।
वार सहते रहे,  स्वयं मिटते रहे।।
आज तक न कर पाए, कुछ भी हासिल।
बदल रहा है वक्त और ------------।।-2

सालों-साल से हम सीने में, खाते रहे गोलियाँ।
पत्थरों को रहे झेलते, कानों में पिघलती बोलियाँ।।
भविष्य था अंधकार और राह भी मुश्किल।
बदल रहा वक्त और --------------।।-3

वो आया मशीहा नूर का, दर्दी भी है बे-दर्द भी।
होते उसके हैं निर्णय, उष्ण भी और सर्द भी।।
जहाँ भी हो जाए खड़ा, दिखती है महफिल।
बदल रहा है वक्त और --------------।-4

जो न कर पाए अब तक, घण्टे भर में दिया कर।
दिल्ली से रावलपिंडी तक, सब काँपे हैं थर-थर।।
इस बार मनाएँ ईद-दीपावली हिल-मिल।
बदल रहा है वक्त और बदल रहा है दिल।
ऐ गुलिस्ते के सुमन, तुम भी जाओ खिल।।

            समस्त देशवासियों को अपने पावन पर्व "ईदुलजुहा" एवं राष्ट्रीयपर्व "15अगस्त" के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित।
     
रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सह समन्वयक,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

Comments

  1. श्रेष्ठ शब्द चयन, सर।

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