बेटा-बेटी एक समान
बेटा-बेटी एक समान,
बेटी इज्जत, बेटा अभिमान।
चाहे हो बेटी, चाहे हो बेटा,
दोनों को शिक्षा दो एक समान।
बेटा अगर है बुढ़ापे का सहारा,
तो बेटी है हर वक़्त का सहारा।
बेटे करते सिर को ऊँचा,
बेटी रखती सिर को ऊँचा।
बेटा अगर कमाता है तो बेटी खिलाती है,
रहती है ससुराल लेकिन सदा आपका खयाल रखती है।
बेटा-बेटी दोनों होते माँ-बाप की शान,
किसी एक को हुआ कुछ तो होते माँ-बाप परेशान।
जब पिता थका हारा घर आता है तो बच्चे खुश हो जाते हैं,
फिर दोनों की दिन की हुई लड़ाई पिता को एक-एक सुनाते हैं।
बेटा पूछे पापा पानी लाऊँ,
तो बेटी बोले पापा सिर दबाऊँ।
मम्मी से दोनों करते अपनी फरमाइश,
फिर दोनों होते खुश जब होती पूरी उनकी ख्वाहिश।
बेटा-बेटी दोनों ही आपकी संतान,
दोनों को रखो एक समान।
अगर बेटे एसी में बैठ कमाते हैं,
तो बेटियाँ गर्मी में खाना बनाती हैं।
अपनी बेटी को ही बेटी न मानो,
अपनी बहू को भी बेटी जानो।
वह भी किसी की बेटी होती है,
जो माँ-बाप को याद कर रात में खूब रोती है।
रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।
बेटी इज्जत, बेटा अभिमान।
चाहे हो बेटी, चाहे हो बेटा,
दोनों को शिक्षा दो एक समान।
बेटा अगर है बुढ़ापे का सहारा,
तो बेटी है हर वक़्त का सहारा।
बेटे करते सिर को ऊँचा,
बेटी रखती सिर को ऊँचा।
बेटा अगर कमाता है तो बेटी खिलाती है,
रहती है ससुराल लेकिन सदा आपका खयाल रखती है।
बेटा-बेटी दोनों होते माँ-बाप की शान,
किसी एक को हुआ कुछ तो होते माँ-बाप परेशान।
जब पिता थका हारा घर आता है तो बच्चे खुश हो जाते हैं,
फिर दोनों की दिन की हुई लड़ाई पिता को एक-एक सुनाते हैं।
बेटा पूछे पापा पानी लाऊँ,
तो बेटी बोले पापा सिर दबाऊँ।
मम्मी से दोनों करते अपनी फरमाइश,
फिर दोनों होते खुश जब होती पूरी उनकी ख्वाहिश।
बेटा-बेटी दोनों ही आपकी संतान,
दोनों को रखो एक समान।
अगर बेटे एसी में बैठ कमाते हैं,
तो बेटियाँ गर्मी में खाना बनाती हैं।
अपनी बेटी को ही बेटी न मानो,
अपनी बहू को भी बेटी जानो।
वह भी किसी की बेटी होती है,
जो माँ-बाप को याद कर रात में खूब रोती है।
रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।
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