पहचान
मैं बच्चा हूँ नादान
मुझे चाहिए अपनी अलग पहचान।
कहते हैं मेरे नानी नाना,
गुरु के पास ही है ज्ञान का खजाना।
रास्ता वही दिखाएँगे,
खजाने तक पहुँचाएँगे।
गुरु के द्वारा ही मिलेगा मुझे ज्ञान,
तभी मिलेगी मेरी अपनी अलग पहचान।
मैंने स्वीकारी अपनी भूल,
मैं जाने लगा प्रतिदिन स्कूल।
खेल-खेल में कर रहा अर्जित ज्ञान,
मुझे मिलता नित्य नया काम।
मैंने लिया है यह जान,
स्कूल ही है ऐसा स्थान।
जहाँ मुझे मिलेगा ज्ञान,
वही ज्ञान दिलाएगा मुझे अपनी अलग पहचान।
रचयिता
दयानंद मिश्रा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय सिद्धी,
विकासखंड-पहाड़ी,
जनपद-मिर्जापुर।
मुझे चाहिए अपनी अलग पहचान।
कहते हैं मेरे नानी नाना,
गुरु के पास ही है ज्ञान का खजाना।
रास्ता वही दिखाएँगे,
खजाने तक पहुँचाएँगे।
गुरु के द्वारा ही मिलेगा मुझे ज्ञान,
तभी मिलेगी मेरी अपनी अलग पहचान।
मैंने स्वीकारी अपनी भूल,
मैं जाने लगा प्रतिदिन स्कूल।
खेल-खेल में कर रहा अर्जित ज्ञान,
मुझे मिलता नित्य नया काम।
मैंने लिया है यह जान,
स्कूल ही है ऐसा स्थान।
जहाँ मुझे मिलेगा ज्ञान,
वही ज्ञान दिलाएगा मुझे अपनी अलग पहचान।
रचयिता
दयानंद मिश्रा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय सिद्धी,
विकासखंड-पहाड़ी,
जनपद-मिर्जापुर।
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