अथ श्री योग चूड़ामणि

कथा है योग की,
आत्मसंयोग की।
जीवन उद्बोध की।
ऋषियों के शोध की।
      हठ योग, लय योग की।
      राज राजेश्वर योग की।
सदियों-सहस्राब्दियों से,
गंगा यमुना की घाटियों से।
संतों, सन्यासियों से।
गुरुवों की वाणियों से।
      जो तत्वबोध पाया,
     भारत में है समाया।
      है भारत की भारती,
      उस ज्ञान को उचारती।
वह दिव्य ज्ञान आओ,
सबको यहाँ बताओ।
कल्याण पंथ जीवन,
सबका यहाँ चलाओ।
     अब योग के, नूतन सुयोग को,
      जन जन को फिर बताओ।
है काया शुद्ध होती,
चिन्मय है बुद्धि होती।
पावन बनेगा जीवन,
आनंद भाव तन मन।
       जीवन के योग की,
       जीवन निरोग की।
     विधियाँ हैं योग की,
      भारत के योग की।
सीखें -यहाँ सिखाएँ,
जीवन सफल बनाएँ।
        कथा है योग की,
       आत्म संयोग की।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।


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