वृक्ष लगाओ

सूखी  धरती  अब  रही  पुकार,
वृक्ष  लगाओ  तुम  करो  श्रृंगार।

श्वांस-श्वांस  में  घुल  रहे  प्रदूषण,
प्राण  वायु  दे  करें  हम उपकार।

बंजर  भूमि  की  तड़प  तो  देखो,
बारिश की आस लगाये  बारम्बार।

कंकरीट के जंगल  अब  कम करो,
वृक्षों  में  ही  छुपे हैं अवसर अपार।

मिट जाएगा इक  दिन  वजूद सबका,
छिन गई जो धरा से हरियाली- बहार।

रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
डोभी, जौनपुर।

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