पापा! मेरे अभिमान
मेरे पापा!
मेरा मान, मेरा अभिमान।
जिसकी उँगली पकड़,
सीखा है लिखना।
जिसके व्याख्यान से,
सही-गलत को है जाना।।
कठिन विषयों से जाती थी डर,
दी चेतना अभ्यास ही बनाता निडर।
अंकों व क्रियाओं भरी गणित-विज्ञान की डगर,
सतत् प्रयास से करो ना अगर-मगर।।
पढ़ाई नहीं, भोजन पकाई सीखाना,
बहुतों का था, ये कहना ।
कलम व ज्ञान को साथी बनाना
मिले प्रतिष्ठा व मान, आप से जाना।।
कुछ पाना है! कुछ कर जाना है!
देख आप, पाला था जो सपना
पाया बहुत, पर खोया भी है।
कुछ पूर्ण हुए, अधूरों को है रचना।
हर वाणी से मिलती है सीख,
माँगू ईश्वर से बस ये भीख।
स्नेह व सबक को जाऊँ ना मैं तरस,
मिले साथ व आशीष आपका अनंत बरस।
मेरे पापा!
मेरा मान, मेरा अभिमान।
रचयिता
प्रियंशा मौर्य,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चिलार,
विकास क्षेत्र-देवकली,
जनपद-गाजीपुर।
मेरा मान, मेरा अभिमान।
जिसकी उँगली पकड़,
सीखा है लिखना।
जिसके व्याख्यान से,
सही-गलत को है जाना।।
कठिन विषयों से जाती थी डर,
दी चेतना अभ्यास ही बनाता निडर।
अंकों व क्रियाओं भरी गणित-विज्ञान की डगर,
सतत् प्रयास से करो ना अगर-मगर।।
पढ़ाई नहीं, भोजन पकाई सीखाना,
बहुतों का था, ये कहना ।
कलम व ज्ञान को साथी बनाना
मिले प्रतिष्ठा व मान, आप से जाना।।
कुछ पाना है! कुछ कर जाना है!
देख आप, पाला था जो सपना
पाया बहुत, पर खोया भी है।
कुछ पूर्ण हुए, अधूरों को है रचना।
हर वाणी से मिलती है सीख,
माँगू ईश्वर से बस ये भीख।
स्नेह व सबक को जाऊँ ना मैं तरस,
मिले साथ व आशीष आपका अनंत बरस।
मेरे पापा!
मेरा मान, मेरा अभिमान।
रचयिता
प्रियंशा मौर्य,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चिलार,
विकास क्षेत्र-देवकली,
जनपद-गाजीपुर।
Kavita ke bhav anmol hai...mere liye
ReplyDeleteप्रांजल सर जी, का सहृदय धन्यवाद व आभार
ReplyDeleteमिशन शिक्षण संवाद व
ReplyDeleteप्रांजल सर जी का सहृदय धन्यवाद