माँ

तेरे आँचल में ही बीता बचपन,
सदा आगोश में रख बनी रहती थी साया,

सारी खुशियाँ सारा सुख
भूल कर मेरी ख़्वाहिशों के लिये,
समर्पित कर देती थी अपना तन मन।

तेरी दुवाओं ने इस कदर रहमत बक्शी है,
दुनिया ने इतना चोट दिया है फिर भी,

रहती हूँ जिम्मेदारियों में खोई,                 
दुष्वारियों को सह के,                       
खुश और सुकून से।।

ईश्वरीय सत्ता का तो मुझे पता नहीं,
पर माँ तुझे याद कर जाने क्यों मुझे असीमित साहस शक्ति मिलती है।।

गम हो दुःख हो या कोई खुशी,
माँ तुझे सोच तेरी तस्वीर से ही वर माँग लेती,

सच है देर सवेर मिल भी जाती जो भी होती ख्वाहिश मेरी।।

सारा जीवन भी अर्पण कर दे तेरे चरणों में,
फिर भी न चुका सकते तेरे त्याग तपस्या बलिदान को हम सब।।

बहुत याद आ रही हो आज माँ,
कोई नही जिससे कह सकूँ अपने जज्बातों को,
समझ सके मेरे दिल के हालात।।

काश तू होती तो मेरे अपने भी मुझे गैरो की तरह रुसवा न करते,
कुछ न कहती तेरे आशीष से सब कर रही हूँ।
बस मुझे यह एहसास यह रहता मेरे सर पे मेरी माँ का साया है।।

रचयिता 
ममता प्रीति श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बेईली,
विकास खण्ड-बड़हलगंज,
जनपद-गोरखपुर।

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