रानी लक्ष्मीबाई
चढ़ तुरंग पर रानी ने
हाथों में थामी तलवार,
हिम्मत लिए हृदय में चल दीं
करने अंग्रेजों पर वार।
नौनिहाल को लाद पीठ पर
आँखों में भरकर चिंगारी,
चंडी बन गयी रण में फिर
धर काली का रूप वो नारी।
अपनी झाँसी हरगिज न दूँ
बस इतनी ही बानी थी,
भयकंपित अंग्रेज थे उससे
वो झाँसी वाली रानी थी।
गाथा उसकी याद है सबको
वीरता रण मैदानों में,
शक्ति का रूप लिए वो माँ
पूजनीय है इन्सानों में।
पुण्यतिथि पर आज नमन
करती हूँ इस मरदानी को,
सादर पुष्प समर्पित मेरे
झाँसी की महारानी को।
रचयिता
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।
हाथों में थामी तलवार,
हिम्मत लिए हृदय में चल दीं
करने अंग्रेजों पर वार।
नौनिहाल को लाद पीठ पर
आँखों में भरकर चिंगारी,
चंडी बन गयी रण में फिर
धर काली का रूप वो नारी।
अपनी झाँसी हरगिज न दूँ
बस इतनी ही बानी थी,
भयकंपित अंग्रेज थे उससे
वो झाँसी वाली रानी थी।
गाथा उसकी याद है सबको
वीरता रण मैदानों में,
शक्ति का रूप लिए वो माँ
पूजनीय है इन्सानों में।
पुण्यतिथि पर आज नमन
करती हूँ इस मरदानी को,
सादर पुष्प समर्पित मेरे
झाँसी की महारानी को।
रचयिता
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।
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