विजय पथ
कक्षा -5
विषय- कलरव
पाठ का नाम- विजय पथ
आओ बच्चों तुमको आज सुनाएँ एक कहानी,
गहरे मित्र थे कछुआ और खरगोश जो बड़े बखानी।
दोनों रहते साथ-साथ और खेलते साथ ही मिल करके,
एक दिन खरगोश को सूझी आकर कहा कछुआ से।
क्यों न एक दिन मित्र हम दोनों साथ ही दौड़ लगाएँ,
देखें जीते कौन? शीघ्र गंतव्य तक पहुँच जाए।
कछुआ बोला, मैं तैयार हूँ आगे की करो तैयारी,
अन्य साथी बुला दोनों ने दिन की घोषणा करा ली।
था पूरा विश्वास खरगोश को वह है कछुए से बहुत तेज,
दौड़ तो वह ही जीतेगा इस बारे में नहीं है भेद।
कछुए ने भी जाना वह है धीमा चलने वाला,
फिर भी उसने दौड़ जीतने हेतु युक्ति रच डाला।
हुए उपस्थित दोनों और भी उनके साथी निश्चित दिन,
सबके मन में था कौतूहल जीतेगा दौड़ कौन इस दिन।
दौड़ हुई प्रारंभ बजाया सीटी जब गिलहरी ने,
अन्य साथी लगे देखने चीटिंग न हो रास्ते में।
कछुआ धीरे-धीरे चला जबकि खरगोश सरपट दौड़ा,
आगे जा खरगोश ने सोचा कर लूँ आराम मैं अब थोड़ा।
मंद-मंद बह रही पवन थी तरु की छाया भी सुहानी,
ऐसे सुहाने वातावरण में नींद थी उसको आनी।
कछुआ अपनी मंद गति से लगातार था चलता,
नहीं फिक्र थी मन में कोई वह हर पल आगे बढ़ता।
गंतव्य स्थान पर पहुँच कछुए ने इधर-उधर जब देखा,
दूर-दूर तक खरगोश न था सोचो उसने क्या सोचा?
नींद खुली खरगोश की तो वह हुआ बहुत हैरान,
गर्दन घुमा-घुमा कर देखा हुआ वह परेशान।
दौड़ चला खरगोश पुनः गंतव्य तक शीघ्र पहुँचने को,
पहुँचा जब वह वहाँ तो देखा माला पहने कछुए को।
हुआ विजेता कछुआ दौड़ में रहे गवाह सब जानवर,
विजय पताका फहराया चलकर उसने 'विजय पथ' पर।
मिले सीख इस कहानी से यदि है हमको आगे बढ़ना,
लगे रहो निरंतर काम में आलस्य नहीं आने देना।
रचयिता
अरविन्द कुमार सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धवकलगंज,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।
विषय- कलरव
पाठ का नाम- विजय पथ
आओ बच्चों तुमको आज सुनाएँ एक कहानी,
गहरे मित्र थे कछुआ और खरगोश जो बड़े बखानी।
दोनों रहते साथ-साथ और खेलते साथ ही मिल करके,
एक दिन खरगोश को सूझी आकर कहा कछुआ से।
क्यों न एक दिन मित्र हम दोनों साथ ही दौड़ लगाएँ,
देखें जीते कौन? शीघ्र गंतव्य तक पहुँच जाए।
कछुआ बोला, मैं तैयार हूँ आगे की करो तैयारी,
अन्य साथी बुला दोनों ने दिन की घोषणा करा ली।
था पूरा विश्वास खरगोश को वह है कछुए से बहुत तेज,
दौड़ तो वह ही जीतेगा इस बारे में नहीं है भेद।
कछुए ने भी जाना वह है धीमा चलने वाला,
फिर भी उसने दौड़ जीतने हेतु युक्ति रच डाला।
हुए उपस्थित दोनों और भी उनके साथी निश्चित दिन,
सबके मन में था कौतूहल जीतेगा दौड़ कौन इस दिन।
दौड़ हुई प्रारंभ बजाया सीटी जब गिलहरी ने,
अन्य साथी लगे देखने चीटिंग न हो रास्ते में।
कछुआ धीरे-धीरे चला जबकि खरगोश सरपट दौड़ा,
आगे जा खरगोश ने सोचा कर लूँ आराम मैं अब थोड़ा।
मंद-मंद बह रही पवन थी तरु की छाया भी सुहानी,
ऐसे सुहाने वातावरण में नींद थी उसको आनी।
कछुआ अपनी मंद गति से लगातार था चलता,
नहीं फिक्र थी मन में कोई वह हर पल आगे बढ़ता।
गंतव्य स्थान पर पहुँच कछुए ने इधर-उधर जब देखा,
दूर-दूर तक खरगोश न था सोचो उसने क्या सोचा?
नींद खुली खरगोश की तो वह हुआ बहुत हैरान,
गर्दन घुमा-घुमा कर देखा हुआ वह परेशान।
दौड़ चला खरगोश पुनः गंतव्य तक शीघ्र पहुँचने को,
पहुँचा जब वह वहाँ तो देखा माला पहने कछुए को।
हुआ विजेता कछुआ दौड़ में रहे गवाह सब जानवर,
विजय पताका फहराया चलकर उसने 'विजय पथ' पर।
मिले सीख इस कहानी से यदि है हमको आगे बढ़ना,
लगे रहो निरंतर काम में आलस्य नहीं आने देना।
रचयिता
अरविन्द कुमार सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धवकलगंज,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।
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