जय शिव शंकर
जय शिव शंकर, जय हो त्रिपुरारी,
कंठ माल भुजंग, नंदी की सवारी।
नील ग्रीवा है, अंग भस्म लगायों,
आरती करत, पूजत सब नर - नारी।
आशुतोष तुम, तुम हो भोले भंडारी,
चाँद विराजे शीश, जटा में गंगा धारी।
महाकाल तुम, सृष्टिकर्ता हूँ बलिहारी,
शिव - शक्ति का अद्भुत रूप मनहारी।
डम - डम ड़मरू पर नाचे, जब बम - बम,
भूत, पिशाच, बेताल संग, खुद अंतर्यामी।
विष्णुवल्लभ तुम, तुम ही हो शूलपाणी,
शिवाप्रिय तुम, भक्तों को लिये हो वरदानी।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
डोभी, जौनपुर।
कंठ माल भुजंग, नंदी की सवारी।
नील ग्रीवा है, अंग भस्म लगायों,
आरती करत, पूजत सब नर - नारी।
आशुतोष तुम, तुम हो भोले भंडारी,
चाँद विराजे शीश, जटा में गंगा धारी।
महाकाल तुम, सृष्टिकर्ता हूँ बलिहारी,
शिव - शक्ति का अद्भुत रूप मनहारी।
डम - डम ड़मरू पर नाचे, जब बम - बम,
भूत, पिशाच, बेताल संग, खुद अंतर्यामी।
विष्णुवल्लभ तुम, तुम ही हो शूलपाणी,
शिवाप्रिय तुम, भक्तों को लिये हो वरदानी।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
डोभी, जौनपुर।
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