कोरोना वायरस

आकर मानव को तबाह कर।
शरीर में प्रवेश देख आह भर॥
   कारण का नहीं होता एहसास।
   ईश्वरीय सत्ता पर नहीं विश्वास॥
देखें खुद को शीशे के सामने।
मनुष्य योनि का क्या है मायने?
    तरस आये देख अपनी बेबसी।
   खुद लगे हैं करने में खुदकुशी॥
वायरस है, तबाह के फिराक में।
अंकुश हो इन्सान के दिमाग में॥
    नव अवतार में आया कोरोना।
   मुस्कान नहीं ओठों पर न रोना।।
जाने कितने हुए काल कवलित?
शाकाहार की ओर हो अग्रसरित।
     शिक्षा से संकल्पित अभिनय।
   आशाओं से विकसित अनुभव।
जीयो और जीने दो सबको।
मानवता से विश्व को ढक लो॥
    आदत में हो जब आत्मसुधार।
   प्रकृति भी होगी अवश्य उदार ॥
           
रचयिता
रवीन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बसवार,
विकास क्षेत्र-परतावल,
जनपद-महराजगंज,उ०प्र०।

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