घमंडी का बाग

सुरम्य बाग था घमण्डी का,
चारों ओर  से बहुत  ही सुन्दर।
बच्चे होते प्रसन्नचित सब,
खेलने आते बाग में घुसकर।।

वापस आकर घमण्डी ने,
चिल्लाना फिर  शुरु किया।
डरकर  भाग गए सब  बच्चे,
किसी  ने हिम्मत  नहीं किया।।

बाग  मे आना सख्त  मना है,
बोर्ड  टाँग फरमान  किया।
बच्चे सब मायूस  हुए जब,
खेलना  उनका बन्द हुआ।।

चारों ओर बसंत की सुषमा,
बाग में बर्फ  संग ठंडी  हवा।
प्रतिदिन  ओले  लगे  बरसने,
न  गर्मी आयी न बसंत हुआ।

और अचानक  मधुर संगीत,
सुनाई  दिया चिड़ियों का गाना।
देखा  घमण्डी  ने जब बाहर,
आभास हुआ बच्चों  का आना।।

खिलखिला उठी  सब  कलियाँ,
तरु ने  शाखा झुका दिया।
छोटा बच्चा पहुँच न पाया,
घमण्डी का मन  पिघल गया।।

समझ आ गया घमण्डी को,
बिना  बच्चों न बसंत हुआ।
खेलो  बच्चों  प्रसन्नचित सब,
तुमसे ही  बाग आबाद हुआ।।

बच्चे होते सब से  सुन्दर,
ये हैं प्यारे  बाग  के  फूल।
बिन  बच्चों  के  बाग अधूरा,
समझ में आ गयी अपनी भूल।।

रचयिता
डॉ0 सुमन  गुप्ता,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय कोट,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-झाँसी।

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