आये हैं प्रिय बसंत मेरे

आये हैं प्रिय बसंत मेरे
मैं नाचूँ मन ही मन,
मोर पपीहा तोता मैना
तुम तो तन से डोलना।

वन वृक्ष डाली डाली
नव ओढ़नी ओढ़ना,
पहनूँ रंग बिरंगी साड़ी
फूलों हार और गहना।

धरती अंबर तुम गाओ
मैं भी गाऊँ झूम झूम,
कोयल तुम तो अपनी
मधुर मधुर कूक सुनाना।

हे भौंरा कली कली
जाकर प्रिय से कहना,
प्रतीक्षा करती घड़ी घड़ी
देखा एक सुंदर सपना।

लेकर आया है बसन्त
नवजीवन का प्रभात,
बुलबुल बिछाओ तुम
हरियाली का बिछौना।

धुंध कुहासा पाला सर्दी
कँपकँपी बर्फीली हवा
विदाई पर अपनी तुम
अब बिल्कुल ना रोना।

हे सरसों बुरांश फ्योली
फाल्गुन रंग बिरंगी होली
मैं भी हँसूँ चुपके-चुपके
तुम खिलखिलाकर हँसना।

सूरज चाँद नदी पर्वतराज
तुम भी गाओ मंगलाचार,
आए हैं प्रियतम मेरे
लेकर सौंदर्य का उपहार।

नन्हें-नन्हें पौधों जागो
भोर हुआ अब मत सो,
स्वर्ण सी चमकती धरा
स्वर्णिम अवसर मत खो।

रचयिता
रंजना डुकलान,
सहायक अध्यापक, 
राजकीय प्राथमिक विद्यालय धौडा़,
विकास खण्ड-कल्जीखाल,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

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