कभी-कभी

हाँ कभी-कभी थक जाती हूँ मैं
हाँ कभी-कभी रुक जाती हूँ मैं
हाँ कभी बिखर जाती हूँ टूट के 
क्या करूँगी? मैं अकेली
इस  कड़ी धूप में,
फिर कहीं से रौशनी
आती है मेरे ध्यान में,
जो भी होगा देख लेंगे
पहले कूद तो लें मैदान में।।

हर फूल का आधार कली होती है
अंक का भी आगाज जीरो होती है
हाँ पहला हर कदम,
निश्चित ही लड़खड़ाता है,
गिर ना जाएँ हम कहीं,
ये खौफ भी सताता है,
फिर कहीं से आती है माँ,
 जैसे हाथ मेरा थामने,
हार-जीत का तो देखा जाएगा
 पंख तो फैला ले आसमान में।।

हर शिक्षक के भीतर एक योध्दा है 
माना हर पल चुनौतीपूर्ण होता है
गर बिन लड़े ही,
मान लूँगी हार मैं।
मान लूँ कि हर कोशिश
व्यर्थ है, बेकार है।
कहीं तोड़ न दूँ मैं उसे, जो
शिक्षक से उम्मीद है अरमान है।
फिर कहीं से कर्तव्यनिष्टा ने पुकारा है,
आओ जीत लें जहान ये,
जो मेरा है, तुम्हारा है।।

रचयिता
अनु चौधरी,
सहायक अध्यापक, 
प्राथमिक विद्यालय शंकरपुर,
विकास खण्ड-फरीदपुर,
जनपद-बरेली।

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