भूमिपुत्र
मैं तप रहा हूँ तृप्त करने,
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
दृगों की कोर भीगी हुई,
स्वप्न का पट सजाता हूँ।
समृद्धि के रंग भरने को,
नित्य रज माथे लगाता हूँ।
विविध हैं रंग जो खेत मेरे,
अन्न के मोती उगाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
हो प्रलय सी आँधियाँ कोई,
या झंझावात की गर्जना।
लू भरे तप्त रवि ताप में,
श्रम बिन्दुओं की गिराता हूँ।
लिख रहा गाथा स्वयं की,
मधुआस में जीवन बिताता हूँ।
जिन्दगी के रास्ते हैं कठिन,
पर बोझ सिर पर उठाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
गाँव मेरा, हर गली मोड़ मेरे,
पता इतना है बताता हूँ।
देखकर यूँ हैरान मत हो,
मैं धरित्री के गीत गाता हूँ।
चल रहे उद्योग जितने हैं,
नींव उनकी मैं बनाता हूँ।
बाजारवादी इस व्यवस्था में,
सुनो बस आँसू बहाता हूँ।
स्वप्न के चित्र मैंने सजाए,
रंग भरने ही न पाता हूँ।
चमचमाते काफिले आते,
बस खड़ा फोटो खिंचाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
दृगों की कोर भीगी हुई,
स्वप्न का पट सजाता हूँ।
समृद्धि के रंग भरने को,
नित्य रज माथे लगाता हूँ।
विविध हैं रंग जो खेत मेरे,
अन्न के मोती उगाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
हो प्रलय सी आँधियाँ कोई,
या झंझावात की गर्जना।
लू भरे तप्त रवि ताप में,
श्रम बिन्दुओं की गिराता हूँ।
लिख रहा गाथा स्वयं की,
मधुआस में जीवन बिताता हूँ।
जिन्दगी के रास्ते हैं कठिन,
पर बोझ सिर पर उठाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
गाँव मेरा, हर गली मोड़ मेरे,
पता इतना है बताता हूँ।
देखकर यूँ हैरान मत हो,
मैं धरित्री के गीत गाता हूँ।
चल रहे उद्योग जितने हैं,
नींव उनकी मैं बनाता हूँ।
बाजारवादी इस व्यवस्था में,
सुनो बस आँसू बहाता हूँ।
स्वप्न के चित्र मैंने सजाए,
रंग भरने ही न पाता हूँ।
चमचमाते काफिले आते,
बस खड़ा फोटो खिंचाता हूँ।
भूख सबकी मैं मिटाता हूँ।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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